विचार
विडम्बना है कि आज अपने क्षणिक लाभ के लिए राष्ट्रीय हितों की अनदेखी हो रही है और कुल राजनीति “मुफ्त ” तक सीमित हो गयी है । जो मुफ्त के लाभ केन्द्र से लेने है वो मिलेंगे ही राज्य के लाभ वोट की कीमत लगा
कर लो ।
मेरे व्यक्तिगत विचार से केन्द्र “मुफ्त ” का टमटमा बजाना छोड कर मेहनतकशी का बिगूल फूके और उस समय दूध का दूध और पानी का पानी होने दे , हो अभी भी वही रहा है कि मुफ्त बिजली पानी मकान डिलेवरी (बच्चों की भीड बढाओ) पर निर्णय हो
रहे है ।
देश के विकास की किसी को चिंता नही है ।
यह भी सच है कि 21 वीं सदी से 22 वीं सदी की और आने वाली पीढी भारत को “मुफ्त युग” के रूप में याद करेगी ।
मेरे विचार से आज का समय अत्यंत संक्रमण के दौर से गुजर रहा है ।
विरोधी ताकते सिर उठा रही हैं
हर अच्छे काम जो बरसों से लम्बित थे उनके हल होने पर पर शौक मनाया जा रहा है ।
क्षेत्रीयवाद विघटनवाद को बढावा दिया जा रहा है ।
कुल मिलाकर आज बुध्दिजीवियों को संगठित होने की जरूरत है जो देश हित, विकास पर कलम चलाये और माहौल बनाये अन्यथा
बुद्धुजीवी हमेशा अपना मतलब साधते रहेगे ।
वन्देमातरम, जय हिन्द