विचार मंथन
आदिकाल में खोया नहीं,
वर्तमान से है अनजान,
भविष्य चिंता झलक रही.
देखों अनजान इन्सान.
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बोया बबूल तलाकात नहीं,
पसंद सुस्वादु आहार,
विज्ञापन देख ते लुभावने ,
नापसंद करते अचार.
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तन रंगे, स्वांग रचे,माथे चंदन,
समझे नहीं क्रोध अभिजात,
जितना लड़े, छोड़ भगे मैदान.
उतना फँसे, ज्यों दलदल रेत.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस