विचार और बुद्धि
किसी को
पहचानने में
दिक्कत न हो,
.
आँख मिली है,
कान है,
स्पर्श है,
इन सबका तारतम्य
विचार और बुद्धि.
.
जिसे जानना ही नहीं,
भक्ति करनी है,
असहाय बने रहना है,
दासता स्वीकार है,
.
क्या फर्क पड़ता है,
आँखों की रोशनी,
और रोशनी न होने पर.
कर्ण, स्पर्श हो न हो.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हँस