विचारों की अधिकता लोगों को शून्य कर देती है
हम अक्सर कितना आगे बढ़ जाते है
जहां न तो दुख की अनुभूति होती है
ना ही सुख का आनंद
जीवन में चाह (आकांक्षाएं) समय के
साथ बदलती रहती है नही बदल पाता लोगों का
आचरण
जीवन में व्यक्ति का सरल होना सबसे कठिन कार्य है
एक समय बाद सारी समझ विचारों ,दुख ,हर्ष
आदि से ऊपर उठ जाते है
और विचारों की अधिकता की वजह से हम
शून्य हो जाते है
जहां कुछ न खोने का अधिक दुख होता है
ना ही मिलने की खुशी
और मुझे लगता है की शून्य होना ही
संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है
जहां आदमी स्वयं से मिल जाता है
और स्वयं में हर समय खुश रहता है
जहां हर कार्य निः स्वार्थ भाव से होता है
किसी से कोई अपेक्षा नही रह जाती