विचारी निर्भया
ये कविता हाथरस की उस निर्भया का दर्द है
देख फिर से ये घिनौना काम हुआ।
फिर किसी बेटी का शिकार हुआ।
आबरू लूटी गयी है आज फिर से।
खेत में लेने गयी थी घास घर से।
देख उसको आज कुछ बहसी दरिन्दे।
पल रहे थे जिनके मन में विचार गन्दे।
गीदड़ों ने आज उसको नोच डाला।
हवस में उसका बना डाला निवाला।
चार दरिन्दों में इज्जत लूटी गयी।
दर्द से वो चीख पीड़ित रोती रही।
उन दरिंदो ने जब उसके हाथ तोड़े।
भीख मांगी जान की उसने हाथ जोड़े।
हैवानों ने उसकी जीभ काट डाली।
गुलाब सी कली देखो मसल डाली।
पंद्रह दिन वो अस्पताल में भर्ती रही।
जिंदगी और मौत की जंग लड़ती रही।
जिंदगी की जंग वो विचारी हर गयी।
शव लेके पुलिस उसके गांव आ गयी।
माँ ने शव मांगा तो उसको न दिया।
रात में ही शव का अंत्येष्टि कर दिया।
मनुज के भेष में दनुज कृत्य करते हैं।
बेटियों पर जानवर सा व्यवहार करते है।
देख कर ये धरती माँ के भी अश्रु छलके।
सभ्यता मिटी है मानव के अंदर से।
हे’ विष्णु आप जल्दी अवतार लो।
दुष्टों को जग से आप संहार दो।
द्रोपदी सी बेटियों लाज बचाओ।
हे विष्णु आप कृष्ण के अवतार में आओ।
■अभिनव मिश्र