विचलित
विचलित है तन , मन भ्रमित है
साँसे चलती धड़कन वंचित है
शोर खामोशी का उठता हर पल
इस दिल से अब ना वो परिचित है
हृदय में हरदम है तूफान भरा
मन क्यों उदास और मूर्छित है
मंजर सुनसान पड़ा,रास्ते चोटिले हैं
मन में ख्वाबों का समुन्दर,कल्पित है
टूटा है दिल, सपने भी क्रन्द्न करते हैं
एकाकी है जीवन,मन अब सुख रहित है
ममता रानी
रामगढ़