विचलित हूँ
तेरे जाने से मैं विचलित हूँ,
कैसे? कहूँ तुम आ जावो,
जलता हूँ मैं विरह में तेरे,
कैसे?कहूँ तुम विरह मिटावो,
कुछ किरणे,कुछ धूप सनम,
छाया मेरा बन जाता हैं,
समय को कोई पकड़ सका न,
पल निकल जाता हैं,
देखा समय का छलिया रूप,
छल से किया जुदा तुमको,
तेरे प्रेम विरह की अग्नि में,
तप के बना मैं दीवाना,
जल के भस्म हुई सारी खुशियां,
लेके भस्म मैं फिरता हूँ,
कैसे तुम्हे समझाऊं मैं,
आके तेरे पास सनम,
सोचता हूँ जब जब बीती बातें,
मन भ्रमित हो जाता है,
सावन में भी गरजते बादल ,
न बरसे प्रेम की बारिश,
काश! तुम आ जाती फिर से,
मुझपे पड़ती तेरी दृष्टि,
विरह की पीड़ा को हर लेती,
करती मुझपे प्रेम की वृष्टी,
क्या? अब इन नैनो को मेरे,
उम्र भर…राह ही देखे,
देके सजा तुम मुझको गयी,
जीवन भर का दर्द सनम,
जितना भीगा मैं प्रेम में तेरे,
उतना ही अब प्यासा हूँ,
होंठो पर कैसे लाऊं,
दर्द भरी पुकार,
जीवन भर करूँगा तेरा इंतजार,
कैसे तुम्हे बताऊं,
न दिन है न रात,
शाम की बेला जब आती है,
दर्द को मेरे ले आती,
प्यार भरी वो तेरी अदाएं,
अब हैं मिली जुदाई,
कैसे सहूँ मैं दर्द की पीड़ा,
जो बेदर्दी ने पाई,