विकास
विकास के नाम ,
पर तय कर लिया वक्त ने दूरी।
तंग रास्ते
बढ़ते तनाव
झिझकते अपने
बढ़ते सपने
सिर्फ दूरी
वक्त के साथ क्या सचमुच , व्यक्ति ने किया है विकास ।
बढ़ते वक़्त क्रम में
बंदरों और अन्य जीवों से
सिर्फ शारीरिक परिवर्तन ,शायद यही है विकास
जिसने दूरी तय कर ली आज । व्यक्ति समाज में परिवार में , बढ़ते हुए तनाव में,
भारत में क्या ?
पुरी दुनियाँ में सभ्य और स्वस्थ व्यक्ति का व्यक्तित्व चाहिए।
जिसमें अधुरे है ?
रिश्ता में जीवन चाहिए ।
जिसमें अधुरे है ?, एक विकास जिसमे पूरे है आज,
सिर्फ आबादी जिससे बढ़ रही है धरती की बर्बादी।
नर से अच्छा तो नरपशु है आज
हैं यहाँ है ,मूल्यों का सचमुच ह्रास
क्या यही है विकास।
आधुनिक प्रजातंत्र सोचे आज I
– डॉ. सीमा कुमारी, बिहार (भागलपुर )
ये मेरी स्वरचित रचना है जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।