! विकसित भारत !!
बात कहूंगा कांटे की करना इस पर गौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
कभी पूंजी,समर्थन-साझेदारी को मोहताज।
मांगते रहते थें अस्त्र-शस्त्र,तकनीक अनाज।।
आज नई पहल से जब से हुआ नया आगाज।
भरे आत्मनिर्भर उड़ान पा नये पंख-परवाज।।
तौर-तरीका में तरीका ही नही बदला तौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
जहाँ कभी पसरा रहता था मौत सा सन्नाटा।
वहाँ बढ़ी खुशहाली-खरीदारी खूब खपे डाटा।।
जहाँ होती थी कभी भी बेवजह पत्थरबाजी।
आज होती क्रिकेट की बैटिंग और गेंदबाजी।।
आज नया है भारत और नया ही ये दौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
आज पल-पल भरता है विदेशी मुद्रा भंडार।
विश्वपटल पे नया भारत लेता नया आकार।।
तीसरी आर्थिक शक्ति मनी है तो मुमकिन है।
सपने ये सच करने भारत लगा रात-दिन है।।
आज विकसित देशों के बीच ठिकाना-ठौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
कभी दुनिया के देशों की जुड़ती थी जमात।
दबी-अनसुनी रह जाती थी भारत की बात।।
अब भारत ने दुनिया में बिठाई ऐसी बिसात।
सारी दुनिया आई साथ खा गए बैरी मात।।
आज भारत हर मंच,हर वार्ता का सिरमौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
कभी चाँद पर पहुंचते कवि कभी प्रेमी-युगल।
भारत ने उतार दिया वहाँ चंद्रयान सकुशल।।
दुनिया के लिए बनाते हैं टीके-दवाएं अव्वल।
जहां की बड़ी कंपनीया चलाते-बनाते सफल।।
दुनिया में भारत की चर्चा अब आमतौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
हैं करोड़ों गरीब-मजदूर,महिलाओं के पास।
गैस,राशन,बिजली-पानी,शौचालय-आवास।।
सड़क-स्कूल,अस्पताल,रेलवे बनते आस-पास।
हर दिन होता नई योजनाओं का शिलान्यास।।
आज सब मुंह स्वाभिमानी रोटी का कौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
आज किसान सम्मान से लेकर नारी सम्मान।
अंतिम व्यक्ति तक को भी मिल रही पहचान।
भारत भर में आज जागा एक नव स्वाभिमान।
हर दिन हर क्षेत्र में बन रहे नित नए कीर्तिमान।।
आज नारी राष्ट्रपति-मंत्री,पंच,पार्षद-महापौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
कुछ कमियों ने ये देश का था बिगाड़ा खेल।
हमने भी कमियों का निकाल डाला है तेल।।
जब विकास, गौरव-स्वाभिमान का होता मेल।
तब आत्मनिर्भर भारत की चल पड़ती रेल।।
ये सब सही मतदान, कुशल नेतृत्व बतौर है।
वो वक्त कुछ और था ये वक्त कुछ और है।।
~०~
सितंबर, २०२४. ©जीवनसवारो