विकटता और मित्रता
काश! ये पल यही थम जाता,
कुछ अधूरा चाह परिपूर्ण हो जाता,
सफलता — असफलता कटुवार्ता न होता,
काश! कुछ जिम्मेदारियों का बोझ कम हो जाता।
काश! इस गुजरते लम्हों को रोक पाते,
परिस्थितियों का वक्तव्य आकर्णन होते,
मन का कसक आंसुओ में तब्दील हो जाता,
काश! दोस्ती के कुछ क्षण मयस्सर हो पता।
काश! ये कालचक्र यही ठहर जाता,
मंजिल का होड़ बुनियादी रिश्तों से ऊपर न आता,
आरोह-अवरोह में भी अविकल मन को संवारते,
काश! बेतरतीब गलियों में दोस्ती का शोर मचाते।
काश! वक्त के पहियों को अतीत में मोड़ पाते,
कुछ हसीं सफर को पुनर्जीवित कर पाते,
दोस्ती की सोहबत से सारी गुत्थी सुलझा पाते,
काश! ये बेफिक्री का सिक्का ऊंचे आसमां तक उछाल पाते।
“स्वरचित ”
स्तुति…