वाह रे मानव
वाह रे मानव
साथ माटी का रिश्ता है तेरी काया से।
काहे दम भरता है झूठी मोह माया से।।
खुशी या गम हो या दुख कोई हजार दे।
मस्तराम बनकर तू जिंदगी गुजार दे।।
तेरा जीवन तेरा नहीं कुछ दिन का मेहमान है।
ईंट -पत्थर जमा करने को ,काहे तू परेशान है।।
तन नहीं ,धन नहीं तेरा ,मन को संभाल ले।
उस प्रीतम से मिलने को, मन चेतक को लगाम दे।।
मोह- माया का पर्दा गिराता है, जो हम सबको बनाता है।
जग में झूठी है यह माया, यह भी वही बताता है।।
प्यार प्रेम न होगा जग में तो मां भार्या न होगी।
ऐ जग को रचाने वाले ,तब तेरी दुनिया क्या होगी?
लोभ की स्वर्ण श्रृंखला से मन का परिंदा उड़ाइए।
खुशी राम बनके, अपनी सब खुशियां लुटाइए ।।
काहे अकड़े जवानी में ,बचपन भी कभी आया था।
अकेले जाना अनजान डगर पर ,अकेला ही आया था।।
जग में कोई नहीं आता हमेशा के लिए।
ऐसा कुछ कर चले ,याद आए हमेशा के लिए।।
सुख-दुख मन का खिलौना है, कभी हंसता है कभी रुलाता है।
सृष्टि का संतुलन रखने के लिए, विधाता यह नियम बनाता है।।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश