वाह रे पशु प्रेम ! ( हास्य व्यंग कविता)
आज कल कैसी है आई ,
विदेशी सभ्यता से बीमारी ।
पड़ोसियों के टामी को ,
कुत्ता कहना पड़ गया भारी ।
पड़ोसी तो क्या घर के लोग ही ,
अपनों से रूठ जाए ।
अगर जरा सी भी डांट उनके ,
प्यारे “पेट” को हम लगाए ।
“कुत्ता नही यह हमारा बच्चा है “,
उनके खातिर हर रिश्ता तोड़ देना गवारा है ।
क्योंकि इस दुनिया में सबसे प्यारा ,
सबसे अजीज कुत्ता हमारा है।
इंसान के प्रेम ,दुलार की क्या ,
इंसान के जीवन की कोई कद्र नहीं ।
उसे उनका “प्यारा * काटे,नोचे खसोटे,
यह तो कोई बहुत बड़ा गुनाह नहीं ।
इनके डर से कोई तीसरी मंजिल से गिरकर मर जाए ,
किसी लिफ्ट में किसी बच्चे को काट ले ,
चाहे कोई भी नुकसान करले।
इन्हें सात खून माफ !
मगर मजाल क्या कोई इनकी ओर,
तिरछी नजर से ही देख ले ।
इन हक के लिए सारा प्रशासन खड़ा हो जाता है ,
एक पीड़ित इंसान के दर्द को ,
ऐसे में भला कौन पूछता है !
ऐसा नहीं के हमारे देश की सभ्यता ,संस्कृति ने ,
पशुओं से नफरत सिखाई हैं।
मगर हमारे शास्त्रों ने ,हमारे महात्माओं ने ,
एक उचित दूरी निर्धारित की है ।
प्रेम करना तो ठीक है ,
उसमें कोई बुराई नही ।
मगर किसी भी चीज की अति हो ,
यह तो किसी भी लिहाज से
जायज नहीं ।
कुत्ते को साथ बिठाकर खाना खिलाना ,
या उसका झूठा खा लेना ।
कुत्ते को साथ सुलाना ,
और अपने तन से चिपकाए रखना ।
इंसान की सेहद के लिए भी ठीक नहीं ।
अत्यधिक पशु प्रेम मानव जीवन में ,
कभी न कभी तो पड़ेगा भारी ।
आपको लग सकती है जीवन में ,
कोई न कोई भयंकर बीमारी ।
इसीलिए प्रेम करो उचित मात्रा में,
यही उचित है ।
आपके जीवन के लिए और आपसी रिश्तों,
के लिए भी अत्यंत जरूरी है ।