वाह रे इंसान
वाह रे इंसान
इंसान ओ इंसानियत के रहनुमा
इतिहास कि बुलंदियों को तुम ने छुआ
काले अंधेरे गर्त से निकल आए तुम
अग्रसर फिर इस तरफ हो आए क्यू ।
याद कर अपने स्वर्णिम अतीत को
बलवान थे जब सब मिल साथ थे
फिल क्यूँ पड़ा निन्यानवें के फेर में
हो गया अकेला तू अब इस भीड़ में ।
प्यार से मिल बैठ सब आनंदमय
कट रहा था जीवन बस खुशनुमा
फिर भौतिक सुख की चाह ने करवट जो ली
रुख बादल गया चलते हुए इंसान का।
भाई भाई न रहा , खून सब पानी बना
सोने चांदी की चाह में , इंसान पशु वत हो गया
सत्य पथ का त्याग कर , कुमार्ग पर हो अग्रसर
व्यर्थ कर अनमोल जीवन,ओ मूर्ख तुझ को क्या मिला ?
अब भी समय है , संभल सकते हो अभी
मुख मोड़ना ना संस्कृति से तू कभी
मिल कर रहो तो श्रेष्ठ तुम इंसान हो
सत्कर्म से ही बन पाओ गे महान तुम ।