वास्तविकता
संस्कार आदर्श नीति चरित्र सब बातें भूख के सामने थोथी लगती है ,
क्योंकि भूखे पेट के सामने केवल दो रोटी जुटाने का लक्ष्य ही सर्वोपरि होता है ,
जिस के प्रयास में वह अपने ज़मीर को दबाता है , नीति और आदर्शों की आहुती देता है ,
अपने अंतर्निहित संस्कारों तक को दांव पर
लगा देता है ,
क्योंकि भूखे पेट रहने की कल्पना उसे
मजबूर करती है ,
दो रोटी हासिल करने का जुनून उसमें छिपी मानवता का गला घोंटती है ,
उसे प्रकृति के नियम अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष का बोध कराती है ,
उसमे छुपा पशु उसे मुखौटे पहनकर जीवन रंगमंच पर कलाबाजियाँ खाने को बाध्य करता है ,
वह भी शामिल होता है राह में चलती भीड़ में
इस बात से बेखबर कि रास्ता कहां जाएगा ?
शायद उसकी सोच में भीड़ की मनोवृत्ति हावी हो चुकी है ,
कि जब इतने लोग साथ हैं तो कहीं ना कहीं पहुंचेंगे अवश्य ,
भीड़ में भी वह आगे निकलने की कोशिश करता है,
उसे पता नहीं कि लड़खड़ा कर गिरने पर भीड़ के लोग उसे रौंद कर निकल जाएंगे ,
उसे थामने और उठाने वाला कोई नहीं होगा ,
क्योंकि भीड़ के सभी लोग उसके प्रतिरूप हैं ,
जिन्होंने उसी की तरह दो रोटी जुटाने की खातिर अपनी आत्मा को दबाकर ,
नीति और आदर्शों को पेट की आग में जला कर ,
मानवता का गला दबाकर ,
एक दूसरे से आगे निकलने की चेष्टा में ,
अपने संस्कारों को दांव पर लगाकर हार चुके हैं ।