वामहालक्ष्मी छन्द
सादर समीक्षार्थ
वामहालक्ष्मी छन्द,
212 212 212
मातु आशीष तेरा मिले।
काव्य का दीप उर में जले।
छन्द का ज्ञान रस दो पिला।
विश्व साहित्य का हो भला।
मुक्तक
प्यार से थी पली बेटियाँ।
थीं सभी की भली बेटियाँ।
हो रहे फिर दुराचार क्यों,
आग में भी जली बेटियाँ।
अभिनव मिश्र अदम्य