किसान
बेबस खड़े हैं खाद की खातिर दुकान पर
पहरा लगा हुआ है पुलिस का किसान पर
कुछ आंकड़ा नहीं है किसानों की मौत का
रेंगी नहीं है जूँ कोई संसद के कान पर
वादे नसीब में हैं ज़माने से आज तक
गो खूब तबसिरे हुए इनकी थकान पर
मातम है घर में आज यह कैसा किसान के
बीजों का घुन गया है घड़ा फिर मचान पर
बकबक सुनो यही कि कमाई है दोगुनी
बस जी हुज़ूर करते रहो इस बयान पर
खाना निचोड़ना है बहुत मुश्किलों भरा
लागत का रेट जाने लगा आसमान पर
हँसिया उठा के आप उसे काट डालिए
रहते हैं झूठे वादे जहाँ जिस ज़ुबान पर