वादी ए भोपाल हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
भोर हूं स्वप्निल सुनहरी, और सजीली शाम हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
शैल शिखरों से घिरी, और झीलों से भरी
भोज की हूं अर्चना, नवाबों की अजान हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
मंदिरों का हूं शिखर, मस्जिदे मीनार हूं
देश दुनिया के अमन की, मैं दुआ भोपाल हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
राजसी रंगत हूं मैं, और नवाबी शान हूं
कौमी एतिहाद में, दिल ए हिंदुस्तान हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
हर एक दिल का गीत हूं, मीत का संगीत हूं
मैं बाग ए बहार हूं, जवां दिलों का प्यार हूं
झूमती झीलों का मैं, शान ए संसार हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
मैं शिल्प का खजाना, साहित्य की मिसाल हूं
वादी ए भोपाल हूं, मैं वादी ए भोपाल हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी