वादा
किसी मोड़ पर ना तुमसे मिलूंगी, चलो ये भी वादा किया आज तुमसे..
कहा था कभी के उफ़ ना करुंगी, विष भी तो हँस-हँस पिया आज तुमसे…
आए थे इक रोज़ तुम ज़िंदगी में
और ज़िंदगी को बहका गए थे..
आए थे इक रोज़ तुम बन्दगी में
और बन्दगी को महका गए थे..
तेरा वो आना, मेरा तुमको पाना, ख़्वाबों के जैसे था फ़साना,
ख़ुशी की थी कीमत, चुकायी है यूँ कि, गमों का खज़ाना लिया आज तुमसे..
न जाने के तुम बिन अधूरी हूँ मैं क्यूँ
दुआ कोई माँगूं तुम्हें माँगती हूँ..
न जाने क्यूँ इतनी चाहत है तुमसे
कि जन्मों से जैसे तुम्हें जानती हूँ..
मेरा प्यार तुमसे, मेरी हार तुमसे, मेरी चाहतों का ये संसार तुमसे..
बसाया था जिसने तुम्हें धड़कनों में, वही तो है टूटा हिया आज तुमसे..
किसी मोड़ पर ना तुमसे मिलूंगी, चलो ये भी वादा किया आज तुमसे…..
सुरेखा कादियान ‘सृजना’