वात्सल्य
“वात्सल्य”
नन्हें मुन्ने बच्चों की किलकारियां ,
घर की रौनक खुशियों का ठिकाना न रहती।
ठुमक ठुमक जब पग कदम धरे ,
पांव पैजनिया सारी थकान दूर कर देती।
चाँद सा मुखड़ा जब देखती ,
नजर न लग जाए आँचल में छिपा लेती।
गोदी में उठा जब नींद तुझे न आये ,
परियों की कथा लोरी सुनाऊँ चाँद तारों के देश में घुमाती।
तोतली जुबान से जब माँ पुकारे ,
निश्छल मन गदगद हो जाती।
कभी दुलारती कभी पुचकारती ,
रोते हुए जब हठ कर तंग करने पे डांट लगाती।
बच्चे मन के सच्चे सबके लाडले ,
माँ का हदृय तनमन न्यौछावर नजर ना लगे काला टीका लगाती।
बढ़ते उम्र बच्चों की मस्ती उधम धमा चौकड़ी से ,
हम भी बचपन में यादों में खो जाते, उनके साथ बच्चे बनकर नये सपने संजोती।
सारा संसार सुखद लगे जब बच्चों से घर की रौनक खुशियाँ आ जाती।
शशिकला व्यास✍️