-वात्सल्य रस
यशोदा संग खेलेकान्हा आंखमीची,
देख दृश्य वात्सल्य की नदियां बहती,
छोड़ दें लाला,, मैया मधुर गुस्से से खींझी,
ना कर अदाएं लल्ला यूं तीखी तीखी,
कन्हैया नजरें घुमाएं कभी टेडी कभी तिरछी,
धीरे से यशोदा मां ने मुड़कर……
काना के कान हौले से खींचे,,,,
मधुर चित्र देख हम तोकान्हा पर रीझे,
रसना भी मधुर रस से भीगे,
अगाध गहरा था लगाव,
यशोदा मां और कृष्णा का स्नेह भाव,
तभी हम ने यह कविता लिखे ।।
– सीमा गुप्ता( अलवर) राजस्थान