वात्सल्य भाव
छोटे छोटे बच्चों की
आंगन में गूंजे किलकारी
मानों सुख के रंगों से वे
मार रहे है पिचकारी
लिए खिलोने हांथों में
वे दूर दूर तक जाते हैं
धूल लगाकर गालों में वे
मन को अतिशय भाते हैं
मिल जाते हैं कभी गले वे
कभी रूठ अति जाते हैं
दृश्य देखने वालों को यह
स्वर्ग का सुख नहिं भाता है
चांद छिपा बादल के पीछे
मां आंचल छिप जाता है
माता करे दुलार उसे जब
अपलक आंखें हो जाती
बूढ़े दादा दादी कहते
पास हमारे आ नाती