वातायन से साथ वात के
वातायन से साथ वात के कोई आया।
कमरे के अंदर आकर जादू बगराया।।
कमरे को मह-मह महकाया उसने आकर।
विहग-वृंद को भी चहकाया गुन-गुन गाकर।।
पलक झपकते कक्ष बना फूलों की घाटी।
आहिस्ते से ढिग आ उसने चुटकी काटी।।
स्वयं भ्रमर बन, तितली पल में मुझे बनाया।
वातायन से साथ वात के कोई आया।।
सहसा धुंध कक्ष में छायी, पट परिवर्तन –
हुआ और प्रारंभ हो गया गायन – नर्तन।।
पता न चला कहां से आए मोर- मयूरी।
केहरि- हरि आए, आ पहुंचे मृग कस्तूरी।।
सबने मिलजुलकर आपस में मोद मनाया।
वातायन से साथ वात के कोई आया।।
फल- मेवा- मिष्ठान्न की लगी वन में ढेरी।
तभी अचानक प्रगट हो गया एक अहेरी।।
ज्योंही दृष्टि पड़ी उस पर सब सरपट भागे।
नींद नदारद हुई और अब हम थे जागे।।
पता नहीं यह सपना किसने मुझे दिखाया।
वातायन से साथ वात के कोई आया।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी