वाटिका विध्वंस
लंका जा पहुंचे थे हनुमत, रघुपति का संदेसा लाये
ध्यान से छाने हर एक कोना, जानकी को वह ढूंढत जाए
खूब बड़ी थी माया नगरी, भूल भुलैया जैसी थी
आखिर नज़र में आयी सीता, बाघ में गुमसुम बैठी थी
सूक्ष्म रूप को धारण करके, सिया सामने पहुंचे हनुमत
‘सेवक हूँ मैं राम प्रभु का, सिंधु किनारे पहुंचे रघुपत
चलिए माता साथ में मेरे, आपको लेने आया हूँ
और यकीन हो आपको मुझपे, तो साथ मुद्रिका लाया हूँ’
भाव विभोर हुई जानकी, अपने धीरज को खो बैठी
और देख मुद्रिका स्वामी की वह, खूब प्रसन्न हो रो बैठी
फिर अश्रु पोंछ बोली हनुमत से, ‘तुम्हरी भक्ति को जान गयी
श्रीराम के लिए सिंधु लांघा, तुम्हरी निष्ठा मैं मान गयी
मिलना चाहू राघव से मैं, पर आप नहीं ले जाएंगे
जाउंगी तोह तभी यहाँ से, जब रघुपति लेने आएंगे
‘पैर निकलूंगी लंका से मैं, अहंकार जब हारेगा
शर से निकला तीर राघव का, जब रावण को मारेगा’
फिर आशीष दिया हनुमत को, ‘हर भक्त तुम्हारे भाँती हो !
जीत तोह निश्चित है राघव की, जो तुम्हरे जैसा साथी हो!
जाओ हनुमत उनसे कह दो, जल्द सिंधु को पार लगाए
बैठी उनकी राह तकती हूँ, जल्दी मुझको लेने आये’
आज्ञा पा हनुमत बोले, ‘चलिए माँ अब मैं चालु
पर भूक लगी बड़ी तीव्र है मुझको, पहले कुछ मैं खा लूँ? ‘
फिर हनुमत ने बगिया में, जो उत्पात मचाया
सैनिक खड़े सभी भाग गए, कोई उनसे न भिड़ पाया
इधर धड़ाम उधर भड़ाम, पेड़ थे गिरते जाते
और सैनिक थे नाकाम सभी, जो आते गिरते जाते
हनुमत ने फिर देखा, एक झुंड असुरो का आ रहा था
लंकेश सुत अक्षय कुमार , नेतृत्व कर उनको ला रहा था
अक्षय कुमार ने फिर हनुमत को, दे चुनौती ललकार दिया
हनुमत ने स्वीकार चुनौती, उसको पटक-पटक कर मार दिया
लंकेश तक खबर जब पहुंची, उसको क्रोध अपार हुआ
और हनुमत को सबक सिखाने, वो खुद अस्त्र ले तैयार हुआ
फिर मेघनाथ बोला, ‘पिताजी आज्ञा दे मैं आगे जाता हूँ!
और उस उत्पाती वानर को, बाँध सभा में लाता हूँ!’
बगिया में पहुंचा इंद्रजीत, उसने हनुमत से रार लिया
जब कोई अस्त्र न काम में आया, उसने ब्रह्मास्त्र से वार किया
हनुमान ने ब्रह्मास्त्र को देखा, तो उसको तुरंत प्रणाम किया
और ब्रह्मास्त्र ने उनको घेर, एक सुरक्षा कवच तैयार किया
इंद्रजीत हर्षित हुआ, उसने सोचा वानर को थाम दिया
और इसके बाद हनुमत ने, ‘लंका दहन’ को अंजाम दिया