वागीश्वरी सवैया
विधाता पिता है सभी का दुखों को मिटाता दया चाहते हैं सभी।
सवेरा वही है निशा भी वही है कभी छांव है धूप भी है कभी।
हमारे चहुंओर विस्तीर्ण ये सृष्टि है ईश
छाया मिलेगी अभी।
करोगे यहां जो वही कर्म तेरा भला हो नतीजा मिलेगा तभी।
कृपादृष्टि हो यूँ विधाता कभी भी कहीं भी न कोई दुखी हो यहाँ।
नहीं आंच आए न संसार रोए खुशी ही खुशी हो यहाँ से वहाँ।
न पीड़ा रुलाए न आँसू बहाए सभी मुस्कुराएं हँसे ये जहाँ।
सजा लें समां आज ऐसा सुहाना बिखेरें सुगंधें कहाँ से कहाँ।
बुराई मिटा दो विषों को हटा दो तभी तो रहेंगे सभी चैन से।
दिलों में पड़ेंगे न छाले किसी के न आँसू बहेंगे किसी नैन से।
चुभेगी न वाणी हमारी किसी को कि होगी न पीड़ा किसी बैन से।
बना दें धरा को सभी आज ऐसा कि आनंद झांके उषा रैन से।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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