वाक्यों के मध्य का मौन
वाक्यों के मध्य का मौन सुना है, कभी
उसमें एक चीख़ सी मौजुद होती है।
इक साधारण से दृश्य के पीछे, भी
पूरी पटकथा ससंवाद लिखी होती है।
बहते रक्त को देखा है, कभी
वो भी तो ना जाने कितने दर्दों से जुड़ी होती है।
आंसुओं के सूख जाने के बाद, भी
आँखों में एक आग सी जली होती है।
कुचले मन की वेदना महसूस की है, कभी
जाने कितने हीं तिरस्कारों से भरी होती है।
जीवित लाश की साँसों में भी,
स्याह रात के अत्याचार की छवि होती है।
सर्द मौसम की जलन ने सताया है, कभी
सिर्फ जिस्म हीं नहीं, आत्मा भी छली होती है।
विश्वास से बंधे रिश्तों में भी,
धोखे की परतें जमी होती हैं।
मंदिरों में स्त्रीस्वरूप देवी को पूजा है, कभी
कुछ घरों में जख्मसहित चरणों में पड़ी होती हैं।