व़क्त
गर्दिश में जब सितारे हों तो राह चलते भटक जाते हैं।
दोस्त कतरा कर निकल जाते हैं तो अपने अजनबी बन जाते हैं। महकती फ़िज़ा भी नाग़वार लगने लगती है। चहकते पंछी भी सोग़वार से लगते हैं। मंज़िल जो अब तक करीब नज़र आती थी यकायक दूर लगने लगती है। तनहाईयाँ और दूर अन्धेरे ऱास आने लगते है। हक़ीकत शिक़ेबाँ करती है तो नाक़ामी मख़ौल उड़ाती सी लगती है।अल्फ़ाज़े आग़ाह जब तब ज़ेहन मे कौंधते बेचैन करते रहते हैं।
ग़र वक्त से हार कर कोई समझौता किया तो गर्दिश से उबरने का मौका नही मिलेगा। इसलिये हौसला ब़ुलंद कर जगा इस सोये हुए ज़मीर को।
श़िद्दत से कोशिश कर। गर्दिश के ये दिन फिरेंगे ।
और कामय़ाबी का चढ़ता सूरज तेरे दर पर एक दिन ज़रूर दस़्तक देगा।