****वह है****
सांसारिक गतिविधियां चलती रहती है
किसके इशारे पर ?
मनुष्य सोचता है मैं कर रहा हूं अथवा मेरे द्वारा हो रहा है।
यह मनुष्य की ऐसी भूल है जो उसे अहंकारी बनाती है ।
सूर्य ,चंद्र ,पृथ्वी सबकी अपनी अपनी दशा और दिशा है । यंत्रों का निर्माण मनुष्य बुद्धि से होता है पर उस मनुष्य के भीतर बुद्धि निर्मित करने वाला कोई तो है।
बुद्धि कुबुद्धि ,ज्ञान अज्ञान ,जीवन मृत्यु यह सब निश्चित ही अदृश्य शक्ति के हाथ है।
कोई चलते हुए गिर पड़ा और उसके प्राण निकल गए,कोई ऊंचे टीले से फिसला और वह बच गया यह सब क्या हमारे वश में हैं ?
तड़पते जीव को कोई बचाता है और कोई किसी को तड़पा कर मारता है ।दोनों कृत्य समय चक्र के बंधन में हैं और उनके करवाने वाला कोई है ।
तथ्य यह है कि कोई मरता नहीं कोई मारता नहीं यह तो उस अदृश्य अनंत अज्ञात परमसत्ता का मापदंड है जिसे सिर्फ वही जानता है।
संसार माने अथवा ना माने पर वह है
“वह दिखता नहीं है अहसास कराता है
जो उसे समझ पाता है।
वही!
सच्चा जीव कहता है।
तो अपना भ्रम हो कि
वह नहीं उसे निकाले
और स्वीकार करें ।
“वह है।”
“राजेश व्यास अनुनय”