वह है कि मानतें ही नहीं।
कबसे मना रहे है उनको पर वह है कि मानते ही नहीं।
हमको मोहब्बत है उनसे बे-पनाह वह है कि जानतें ही नहीं।।1।।
जाकर कह दे कोई उनसे यह बे-वजह है शक उनका।
रिश्तों की आजमाइश में अपनों को यूँ कभी जांचतें ही नही।।2।।
सहने की भी हद होती है कब तक सहेगा कोई इतना।
मिट जाएगा ये सबकुछ हिसाब ए ज़िंदगी यूँ मांगते ही नहीं।।3।।
चला गया है वह दूर तुम से ज़िन्दगी को जियोगे कैसे।
कर ना पाओ जिसे नफरत उसको इतना यूँ चाहते ही नही।।4।।
करना ना करना तुम्हारा सब ही बेकार हो गया क्यूंकि।
अहसान करके किसी पे इतना यूँ किसी को जताते भी नहीं।।5।।
कितना सब्र करता है वो तेरे हर दिए ज़ुल्मों सितम का।
ज़वाब दे देगा वह एक दिन इतना किसी को सताते भी नहीं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ