वह शिक्षक है
इस ज्ञान सिंधु के बीच सहज जो करे वास वह शिक्षक है ।
देकर सुगन्ध जो मन भर दे ऐसा पलास वह शिक्षक है ।
पशुता के कर्कश वचनों में रहता सुभाष वह शिक्षक है ।
जो खुद जलकर भी दुनिया को दे दे प्रकाश, वह शिक्षक है ।
कच्ची मिट्टी को बना सुगढ़, जो जीवन दे वह शिक्षक है ।
सुचिता की मान प्रतिष्ठा में, जो तन-मन दे वह शिक्षक है ।
नैतिकता के पावन घट का, जो रक्षक है, वह शिक्षक है ।
कलयुग में भी सतयुग सा जो फलदायक है, वह शिक्षक है ।
सब कुछ देकर निःस्वार्थ रहे, ऐसा दानी वह शिक्षक है ।
पत्थर को शिव कर दे ऐसा सच्चा ज्ञानी वह शिक्षक है ।
जिसका परिचय दिख जाता है, गीता में, वेद-पुराणों में ।
जो व्यक्त और अव्यक्त बसा अर्जुन एकलव्य के बाणों में ।
शत-शत वंदन उस बृह्म देव की, सुंदर पावन कविता को ।
सबके पापों को जो धो दे उस पतित पावनी सविता को ।
ऐ गुरुवर ! तुम इस जगती पर उस परमपिता के सानी हो ।
हम चरण धूल जिस ईश्वर के, तुम उसके ही अनुगामी हो ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’