वह राम है – रहमान है
हम उसे कुछ भी कहें, वह राम है- रहमान है .
कह लो तो सावन भी है, कह लो तो रमज़ान है .
इन घरों को देखकर, बस्ती नहीं समझें जनाब.
जो यहाँ रहता है वह बस शक्ल से इंसान है .
मत उसे जाहिल समझिये , जिसके मत से आप हैं .
वह भले भोला है साहिब, पर नहीं नादान है .
मन भले दूषित हो पर, तन पे धवल परिधान है .
आज के इस दौर में तो , एक यही पहचान है .
हर आवाजें बीच में ही घोंट दी जाती यहाँ .
अब तो सारे मूल्य – किस्से, नज़्म और दास्तान है .
— सतीश मापतपुरी