वह मुझसे ख़ुश रहती है
मैं उससे रूठा करता हूँ, वह तो मुझसे खुश रहती है।
जले ख़्वाब से काला धुँआ लेकर भी खुश रहती है।
उसने अपना सब दे डाला जो था आँचल धानी में,
समय के थोड़े टुकड़े लेकर वह मुझसे खुश रहती है।
क़तरा-क़तरा खून सींचकर साँस हमारी आती है,
उसकी भी अपनी मर्यादा है आँखों के पानी की।
हम पंछी हैं,उड़ जाते हैं – सपनों की अगुआनी में।
श्याम सलोने मुखड़े लेकर वह मुझसे खुश रहती है।
तिनका-तिनका जोड़-तोड़ के सपनों के घर बुनती है।
गुमसुम गुड़िया-सी रहती है, केवल सबकी सुनती है।
पंक्ति-पंक्ति घूमती रहती, घर की भरी कहानी में।
शीर्षक के पहले अक्षर में जुड़कर ही ख़ुश रहती है।