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14 May 2022 · 3 min read

*वह भी क्या दिन थे : बारात में नखरे करने के 【हास्य-व्यंग्य 】*

वह भी क्या दिन थे : बारात में नखरे करने के 【हास्य-व्यंग्य 】
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वह भी क्या दिन थे ,जब बरात में बराती जाते थे और नखरे कर-करके लड़की वालों की नाक में दम कर देते थे । बारात आने से एक महीना पहले लड़की वालों की टेंशन शुरू हो जाती थी । किस तरह से अच्छी से अच्छी खातिरदारी की जाए कि बारातियों को शिकायत का मौका न मिले !
लेकिन हर बरात में सोलह प्रतिशत बाराती ऐसे होते थे जो बस में चढ़ते समय ही यह तय कर लेते थे कि जनवासे में पहुँचते ही फरमाइशों का दौर शुरू करना है। हर चीज में कमियाँ निकालना है और लड़की वालों को परेशान करके उन्हें लज्जित करना है । अगर कोई आदमी लक्ष्य के प्रति समर्पित भाव से तैयार है ,तो उसे सफलता अवश्य मिलती है । कुख्यात बारातियों को सफलता मिलती थी। कुख्यात इसलिए कि जिस बाराती ने तीन-चार बार बारातों में जाकर लड़की वालों के छक्के छुड़ा दिए ,वह बाराती के तौर पर कुख्यात हो जाता था । कुछ बाराती ऐसे होते थे जो अपनी तरफ से तो भोले-भाले बने रहते थे और इस तरह से प्रकट करते थे कि मानो वह कोई हंगामा खड़ा करना जानते ही न जानते हों, लेकिन अंदर की बात यह होती थी कि कुख्यात बारातियों को आगे बढ़ाने में तथा उन को प्रोत्साहित करने में इन तथाकथित सीधे-साधे शरीफ बारातियों का ही योगदान रहता था ।
अगर बारात में कुख्यात बारातियों ने चाय की फरमाइश की और दस कप चाय बन कर आई है तो यह तब तक पीना शुरू नहीं करेंगे जब तक कि चाय ठंडी न हो जाए। उसके बाद चाय का कप होठों से लगाएँगे और एक घूँट भरते के साथ ही जोर से चिल्लाएँगे -“क्या ठंडी चाय पिलाने के लिए बारात में बुलाया है ? लेकर जाओ यह चाय ,हमें नहीं चाहिए । ”
बस हंगामा शुरू । इनकी देखा-देखी मामले को गर्माने की दृष्टि से तथाकथित सीधे-साधे बाराती भी चाय का कप मेज पर रख देते थे और मासूमियत के साथ कहते थे -“हाँ भाई ! चाय तो वाकई ठंडी है ।”
यह सब षड्यंत्र चलते रहते थे । कुछ बाराती रात के समय जब शहर का सारा बाजार बंद हो जाता था ,कुछ ऐसी फरमाइश करते थे जो लड़की वालों के लिए उपलब्ध कराना असंभव था। लेकिन कुख्यात बराती जनवासे अर्थात उस स्थान पर जहाँ उन्हें ठहराया गया था, भारी हंगामा खड़ा कर देते थे और अपनी इज्जत बचाने के लिए लड़कीवाले को कई बार तो आधी रात को किसी जान-पहचान वाले की मन्नतें करके तथा उसके पैर पकड़ कर – दुकान खुलवा कर बारातियों को संतुष्ट करना पड़ता था । बस यूँ समझिए कि लड़की वाले की पगड़ी इन कुख्यात बारातियों के चरणों में पड़ी रहती थी और यह लोग उसकी इज्जत की पगड़ी उछालने में कोई कसर नहीं रखते थे।
धीरे-धीरे समय बदला और बरात का सिस्टम ही समाप्त हो गया । यह सब बारातियों के नखरो का दुष्परिणाम है । मैं तो कहूँगा कि लड़की-वालों की बद्दुआएँ कुख्यात बारातियों को लग गयीं,जिसके कारण लड़की वालों को परेशान करने की गुंजाइश ही समाप्त हो गई । न बारात जाएगी और न बारातियों के नखरे होंगे ! अब लड़की वाले एक तरह से बारात लेकर लड़के वालों के शहर में आ जाते हैं । सारा इंतजाम लड़के वालों का रहता है । ऐसे में कुख्यात बराती अपने पुराने दिनों को याद करते हैं । कसमसाते हैं ,मुठ्ठियाँ बाँधते हैं, दाँत किटकिटाते हैं और आह भर के रह जाते हैं । बेचारे शादी में भीगी बिल्ली बन कर आते हैं और चूहा बन कर चले जाते हैं। कोई पूछने वाला नहीं । प्लेट ली या नहीं ली ? कुछ खाया या नहीं खाया ? मिर्च ज्यादा है या कम है ? कोई सुनवाई नहीं । खाना है खाओ ,नहीं खाना है तो लिफाफा पकड़ाओ और अपने घर को जाओ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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