वह जब भी मिलते हैं।
वह जब भी मिलते हैं मुझसे बात करते हैं अजनबियों की तरह |
अब तो वह लगते हैं मुझे किताबों में रखे सूखे फूलों की तरह ||1||
न जाने कितने दौर आए जिंदगी में मौसमों की तरह |
फिर भी हम इन्तजार करते रहे उनका सड़क पर लगे पत्थरों की तरह ||2||
बात होती है हमारी उनकी धूप में जैसे बारिशों की तरह |
मिलने के वक्त उनको जाना होता है शाम के परिंदों की तरह ||3||
कितनी कोशिश करता हूं ना याद आए वह मुझें अपनों की तरह |
पर हर कोशिश बेकार होती है मेरी फिरऔन की तरह ||4||
तबीब समझकर हमने जिंदगी दे दी उनको मरीजों की तरह |
फिर वह मुझे क्यों दिखता है कुछ-कुछ मेरें कातिलों की तरह ||5||
बदनाम ना करेंगे हम तुमको तुम्हारे रकीबों की तरह |
क्योकि चाहा है हमने तुमको बडा शरीफों की तरह ||6||
राजदार तुझको क्या बनाया मैनें अपनों की तरह |
मेरी बरबादी मे तुम भी शामिल हो गये मेरे दुश्मनों की तरह ||7||
ताज मोहम्मद
लखनऊ