वह इंसान नहीं
चुगली कर के घर उजाड़े वह इंसान नहीं होता।
दलदल भरी जमीनों पर कभी मैदान नहीं होता।
बुराई कर किसी की हम अगर औक़ात भूले जो
तो ये तिरस्कार है हमारा, वह सम्मान नहीं होता ।।
अपना कभी अपनो का भी, ज़रा-सा ख़्याल रखना।
मिले दोलत तो ख़ुद को, कभी भगवान मत संजना।
कभी सपने तो कहीं अपने अगर दम तोड़ देते हैं
हँसते हँसते अकेले चलो, सफ़र को अनजान मत संजना।।
मुहब्बत से जीते इंसान को तुम कभी नादान मत कहना।
जहाँ नफ़रतो से सुनाए धुन उसको सुर गान मत कहना।
अगर किसी का दिल जलोगे तो जलोगे तुम भी तन्हाई में
यह बड़ी अभिलाषा है दिल की, इसे गुणगान मत कहना।।
लीलाधर चौबिसा (अनिल)
चित्तौड़गढ़ 9829246588