वह आदत अब मैंने छोड़ दी है
जैसे कि मैं करता था दुहा,
सभी खुश और आबाद रहें,
इस धरती पर चैनो- अमन रहे,
सभी के अरमान पूरे हो,
किसी को कोई दुःख नहीं हो,
सभी की बस्तियां बसें,
और चिराग किसी का नहीं बुझे।
लेकिन अब त्याग दिया है मैंने,
ऐसा ख्याल अपने दिमाग से,
अब मुझको अहसास हुआ है,
कि मेरी खुशी तो कोई चाहता ही नहीं,
तो मैं क्यों करूँ ऐसी प्रार्थना,
तो मैं क्यों ऐसा सोचूँ ,
जबकि लोग तो मुझको,
चैन से जीने नहीं दे रहे हैं,
और करते हैं वो,
हर जगह मेरी बदनामी।
सच, आज मैंने देख ली है सच्चाई,
अपने दोस्तों और रिश्तों की,
इंसान के ईमान और इरादों की,
चाहते हैं सभी मुझसे,
अपना मतलब और स्वार्थ पूरा करना,
कोई भी नहीं चाहता है,
मेरे दुःख और आँसूओं को बाँटना,
इसीलिए तो मजबूर होकर,
वह आदत अब मैंने छोड़ दी है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)