वही पर्याप्त है
वही पर्याप्त है
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उलझन में दिन,
अनिद्रा में रात है।
क्योंकि मानव मन में,
लोभ का सन्ताप है।
झूठी शान में,
परेशानी इंशान में।
खुशी का राज छिपा,
रोटी कपड़ा मकान में।
अधिक की आशा,
देती निराशा।
अच्छा खासा,
भागता बेतहासा।
चाहे मिल जाये अब्र तक,
सुकून रहता सब्र तक।
चाहतें बेलगाम हों तो,
हवस जाती कब्र तक।
न छोभ है।
न लोभ है।
न सन्ताप है।
सज्जनों की बात है।
जो भी प्राप्त है।
वही है पर्याप्त ।
सतीश ‘सृजन’