वहीं ले चल
ऐ वक़्त तू हमें फ़िर से ले चल वहीं,
जहाँ रहती थी ओर है ज़िन्दगी मेरी,
क्योंकि साँसे धड़कने है वहीं मेरी,
दीदार से उसके चलती है साँसे मेरी,
उसकी मुस्कराहट है धड़कन मेरी,
आँखों के उसकी चंचलता ज़िन्दगी मेरी,
वो चले इठलाते तो जिंदगी चले मेरी,
उसी से है सहर ओर साज़ है मेरी,
दिल का सुकूँ जहन की है शाँति मेरी,
वो नहीं तो कुछ भी नहीं ज़िन्दगी मेरी,
वो ही अरमां तमन्ना आरज़ू ख़्वाहिश है मेरी,
ऐ वक़्त तू हमें फ़िर से ले चल वहीं।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”