वहीं जिगर से आह
छुआ बुलंदी को भले,तुमने मनुज जरूर !
लेकिन तुमसे हो गये,…सभी तुम्हारे दूर !!
निकले रचनाकार के,.वहीं जिगर से आह !
बिना पढ़े ही लोग जब ,लिख देतें हैं वाह !!
चढ़ा एक सौ चार फिर, ….तन पर तीव्र बुखार !
इक तरफ़ा जब भी हुआ,कभी किसी को प्यार !!
रमेश शर्मा…