वहम
मेरा सच का कारोबार था ,उनका झूँठ का व्यापार।
मैं रहा फर्श पर, उनके हिस्से में आसमान था ।।
मेरी नियत में दोहराव नही था,उनका चरित्र विकट था।
मैं देखता रहा दर औ दीवारों को,उनका सजने लगा बाज़ार था।।
मेरी चाहत थी विश्वाश मिले,मगर मिला उपहास।
जिनकी नियत ही कुटिल थी ,उनके सन्मुख लगी कतार ।।