वसुधा
दो हाथों की अंजुरी में सहेजती प्रकृति परिवेश।
मानव तेरे स्व-लोभ में घर – नगर बचे न ही देश।
हाहाकार मचा धरा,नहीं जल-उपवन-अन्न शेष।
क्यूँ तू प्रलय लाने तुला,धरा क्यूँ मनु दानव भेस।
नीलम अंबर नीली नदी,सब लुप्त हुए संग अग्नेश।
अब कौन तारेगा वसुंधरा,सोच में ब्रह्मा विष्णु महेश।
नीलम शर्मा