वसंत का स्वागत
बसंती ओढ़कर आया, करो सत्कार तुम रचकर,
सजाओ द्वार-चौबारे, पते की बात यह सुनकर;
कि लाया सौ टके वाला, मधुप श्रृंगार रस ऐसा,
धरा की साँस महके है, मदन की चाल के जैसा।
मधुर तुम ही रहे हरदम, सदा साथी बने मदने,
प्रफुल्लित, फूल की माला, गले में डालकर अपने;
जिधर भी देखता मुड़कर, उधर रति राग है दिखती,
सयानी देखकर तरु को, हरित पैगाम है लिखती।
रहो जैसा जिधर चाहे, मदन घर बार है तेरा,
सुखी हर पल रहो सारा, हरा संसार है तेरा;
मदन! मति गूढ़ मेरे मन, रचा पैगाम लिखते हो,
छरक कर वृंद पूरा तुम, हरित मुस्कान भरते हो।
सुख़न की साख है तुमसे, बसंती वायु हो लाते,
भरा है बाग कलियों से, मधुर मधुमास तुम लाते;
रमे हो भाल तनकर तुम, गली की रीति हो बनने,
क्षुधा मिटती नहीं तन की, कभी मधुमास में मदने।
भ्रमण कर आज घर मेरे, चली आई हँ मधुमासी,
बसंती साख पर छाई, हरित तृण छाँव गुण राशी;
नयन हैं आज ख़ुश आख़िर, चमन में कीर के नगमें,
मधुप तू आज लाया है, बसंती फूल हर घर में।
उठाओ शीश अपना तो, जरा इक बार ओ मदने!
शलभ भी गीत गाता है, हृदय भरकर यही अपने;
कि तुम ही हो मही की जी, जगत की जान है तुम में,
सघन ऋतुराज है जबतक, बहे रस धार इस जग में।
…“निश्छल”