वसंत का सफर
वसंत का सफर
सफर मे ही में,मंजिलों की तलाश में हूँ
इन रास्तो के हर मोड़ की वादियों में हूँ।
इश्क़ है जगहों से ,मुकाम की प्यास में हूँ
हुड़ते हुए हर पंछी की आवाज़ में हूँ।
महकते हुए पुष्प है जो,उस और बड़ रहा हूँ
फूलो को इंतजार है बरसात का,और उसके साथ में हूँ।
गुज़रते हुए किनारो को मुड़ के देखता हूँ
में खुश हूँ, क्योंकि में सही रहा पे हूँ।
रातों के चमचमाते सितारे साथ चलते है मेरे
उनके साथ साथ गुनगुनाते जुगनुओं की बरात में हूँ।
उदय हुए सूर्य को रोज देखता हूँ
वो दिन में गुस्सा करता है, और उस से नाराज़ में हूँ।
नरम घास के कालीन बिछे है राह में
उस पर सोता,चलता, दौड़ता की मस्ती के मिज़ाज में हूँ।
मुक़ाम बस पास में ही लगता हे
में अपनों की ख़ुशी,मेरी क़ामयाबी के ख़्वाब में हूँ।