वर्षों बाद
वर्षों बाद
वर्षों बाद भी देखने पर
आसमान
औँधा ही दीख पड़ता है-
नीलिया उजाले से पूता हुआ।
बरसों बाद भी देखने पर
चाँद
ऊपर ही दिखता है-
दूधिया हँसी बिखेरता हुआ।
वर्षों बाद भी देखने पर
पंछी
उड़ता ही दिख पड़ता है
परों पर!
हौसलों की उड़ान सहेजता हुआ।
लेकिन
वर्षों बाद नहीं दिखते-
पेड़
अपनी ही छतनारी के नीचे
बेनिया डोलाते।
वर्षों बाद नहीं दिख पड़ती
धरती
अपनी हरी धानी चुनर में
लपेटती ममता!
वर्षों बाद
नहीं दिख पड़ते
लोग
स्वतंत्र-तन-मन
और विचारों के सहारे।
वर्षों बाद
नहीं दिख पड़ते
लहरों वाले ताल-तलैया!
गांव-गँवई की हँसी-ठिठोली!
बड़ दादा की
छाँव तले के
नुक्कड़ और सहगीत!!!