वर्षा
वर्षा
आयारे आयारे ।
घिर घिर कर शोर मचाया रे।
हम सब को बिगाय रे।
गर्मी को बगाया रे।
दूर दूर से आता रे,
दूर दूर तक जाता रे,
बिना पूछ के आता रे।
बिना बोल के जाता रे।
आनंद से कोयल गाता रे।
पुलकित से मोर नाचता रे।
पेड-पौधे खुशि से हिलाते रे।
पशु-पक्षी आनंद से भागते रे।
बूंद बूंद से नदिया बरते रे,
अन्नदाता को आनंद लाते रे।
आसमान में इन्द्रदनुष छाया रे।
वो देख के बच्चे नाचते रे।
कभी कभी अतिवृष्टि होते रे।
कभी कभी अनावृष्टि भी होते रे।
ठंडी हवा को लात रे।
गर्मी से मुक्ति दिलाती रे।
प्रलय से हम को बचावो रे।
समय को तू अवोरे।
आप नही तो, हम नही,
इसकेलिए तू आता रे,
जि. विजय कुमार
हैदराबाद
तेलंगाना