वर्षा के बूंदों की बंदर बांट
सुना था प्रकृति सब से समान व्यवहार करती है ,
अपने प्यार के रूप में सभी ऋतुएं समान बांटती है ,
मगर यह कलयुग है भाई ,इसके तेवर भी बदले हुए,
यह वर्षा ऋतु में बूंदों की बंदर बांट करती हैं।
कोई लथपथ हो पसीने में तो कोई डूबे बाढ़ में ,
यह मौसम का बराबर हिसाब क्यों नहीं रखती है ?
सर्दी रहती आजकल मात्र दो महीने हमारे यहां
चौमासा याने उमस भरे दिन ५-६ महीने रखती है।
वर्षा यदि भूले भटके याद आ जाए तो २- ४ दिन बस!
तो इस तरह हमारे साथ अन्याय करती है ।