वर्षा की ऋतु
बहार आई वर्षा की,आकाश बूंदों से सज गया
धरती को नमी मिली और फसल खिल गया।
कली के मुस्कराने से खेत में हर फूल खिल गए
पानी के खल खलाने से तालाब भर गए।
मछलियां फुदक फुदक की नाच नाचती
पीले वस्त्र पहन के मेंढ़क गाने में लग गए।
पेड़ पौधे देखो चमकती बूंदों से नहा रही है
जोर से गिरकर बूंदे घर गिराने में लग गए।
सर्प, शेर, बाघ, हांथी, बिल्ली का पता नहीं
काले काले कावां घोसलें बनाने में लग गए।
गाँव की छोरे छोरियां संग धान लगती हैं
पानी की बूंदे हवा को फसाने में लग गए।
सारे जहां ने मौसम का मजा ले लिया
सावन आके झूम के निकल गया।
और हम देखते ही रह गए।
संजय कुमार✍️✍️