वर्षा का भेदभाव
वर्षा का भेदभाव
वर्षा में थे जो घर वाले किये धार ने कई बेघर,
कभी गिरी है खूब झमाझम कभी गिरी है टिपर-टिपर ।।
घर में फिर भी टपके रह गये घर को अच्छा छाने पर, बाहर बरसा मेघ झमाझम अन्दर टपका टिपर-टिपर ।।
पहले निडर खर्च करते हैं और फिर बेतन डर-डर कर,
सावन भादो खूब झमाझम और क्वांर में टिपर-टिपर।।
दिन में दिल में सन्नाटा था रातें भारी हैं मुझ पर,
सौतन नाचे खूब झमाझम विरहन रोये टिपर-टिपर ।।
मेरे पिया छोड़ गये मुझको मेरे बालम तेरे घर,
तेरा आंगन खूब झमाझम मेरी देहरी टिपर-टिपर ।।
बाहर तुम लड़कर आते हो घर में मुझसे लड़ते हो,
मुझ को घुनते खूब धमाधम मेरे आँसू टिपर-टिपर।।
लक्ष्मी माँ है लेकिन उसके सबको अलग-अलग तेवर,
कहीं बरसती खूब झमाझम कहीं टपकती टिपर-टिपर।।
🖋️डॉ. कौशल किशोर श्रीवास्त🖋️
(नतिउत्तर)