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7 Jun 2021 · 1 min read

वर्षा ऋतु

गगन करता आचमन
ठंडी बौछार से
स्निग्ध, सोंधी, सुगंध उठती
धरा के चात्वाल से ।

बधाइयों का शोर है
या बादलों की गर्जना
जगमग बूँदों से सजे
पुष्प करते अर्चना ।

मंजुल, मोहक, महकती
धरा का दर्पण अम्बर है
इंद्रधनुष का आकर्षण है
रंगों का स्वयंवर है ।

रात्रि भी रोशन हुई है
घनप्रिया के तेज से
शांत तट की लहरमाला
बह रही है वेग से ।

मयूर, कोयल झरने तितली
धरा की छटा निराली है
काली बदरी घूम घूम कर
नज़र उतारने वाली है ।

हरे खेत मुस्काते
कागज़ की नाव करे मनमानी है
हर्ष मंगल है हर तरफ
वर्षा ऋतुओं की रानी है ।

2 Likes · 2 Comments · 342 Views
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