वर्षा ऋतु
गगन करता आचमन
ठंडी बौछार से
स्निग्ध, सोंधी, सुगंध उठती
धरा के चात्वाल से ।
बधाइयों का शोर है
या बादलों की गर्जना
जगमग बूँदों से सजे
पुष्प करते अर्चना ।
मंजुल, मोहक, महकती
धरा का दर्पण अम्बर है
इंद्रधनुष का आकर्षण है
रंगों का स्वयंवर है ।
रात्रि भी रोशन हुई है
घनप्रिया के तेज से
शांत तट की लहरमाला
बह रही है वेग से ।
मयूर, कोयल झरने तितली
धरा की छटा निराली है
काली बदरी घूम घूम कर
नज़र उतारने वाली है ।
हरे खेत मुस्काते
कागज़ की नाव करे मनमानी है
हर्ष मंगल है हर तरफ
वर्षा ऋतुओं की रानी है ।