वर्षा ऋतु
वर्षा आई वर्षा आई
लेकर हरियाली की चादर आई
रिम झिम रिम झिम गिरे फुवार
मेंढ़क उछले आंगन द्वार
पंक्षी भी अठखेली करते
पंख भिगोते उड़ते फिरते
कोयल भी अब गीत सुनाती
मंद मंद धरती मुस्काती
हवा भी अब शीतल लगती
भीनी-भीनी धरती महकती
फूलों से सजी फुलवारी
लगती सुंदर प्यारी-प्यारी
—- डां. अखिलेश बघेल —-
दतिया ( म.प्र.)