वर्षा ऋतु
वर्षा काल
गौर कभी घन श्याम घटाएँ तड़पत तड़ित प्रचंड।
बरसत घोर कभी बस झिमकत झूमत मारुत सङ्ग।।
तृषा मिटी जलती जगती की आह्लादित करे पवन।
जनजीवन को संकट में ज्यों प्राणदान का मिला वचन।।
धरा सजल है नव अंकुर से शस्य श्यामला रूप धरे।
समय चक्र के साथ बढ़े और स्वर्ण रूप धर धान्य भरे।।
–Anuj Pandey